नाज़-ओ-नखरे
                                    
                            जिस नाज़-ओ-नखरे के हम दीवाने थे 
वही नाज़-ओ-नखरे हम  न  उठा  सके
तू शादी कर बेरहम फिर से तेरा गुरुर  देखेंगे
कौन उठता है तेरे नखरे जो हम  न उठा सके
उस का बिछड़ना और बिछड़ते वक़्त मुड़कर देखना
यही तो एक हादसा है जिसे आज तक न  भुला सके
दो टके की लड़की खातिर कुछ तो शर्म करो "गोविन्द "
उसकी  क्या  औकात  की  तुम्हारी  नींद को उड़ा सके
                                                      गोविन्द कुंवर 
 
