मेरे चाँद को देखकर
                                    
                            मेरे  चाँद  को  देखकर शायद  ये चाँद  भी जलता होगा
शहर को क्या मालूम गांव में दो-दो चाँद निकलता होगा
उसके होठों की तारीफ मै क्या करू तुम बस मान लो कि
जैसे कोई गुलाब खिलकर और फिर चलता फिरता होगा
मेरा इश्क नहीं आसां कि वो अपनी आँखों में  छिपा सके 
कोई पूछे गर कौन हैं आँखों में फिर वो क्या बोलता होगा
                                                      गोविन्द  कुंवर 
