ईमान को फिर गिरते देखा
                                    
                            अपने ईमान को फिर गिरते देखा
तिरछी नज़रों से जब उसने  देखा
अब यार क्या बताऊं कि कैसे देखा
                          गोविन्द कुंवर
 
