तेरे होंठ चूमकर
                                    
                            एक ही बात जहन में आती है घूम-फिर कर
वही बात जो तुमने कही थी मेरे होंठ चूमकर
मैं तुम्हे यूँ ही जान नहीं कहता हूँ  मेरी  जान
पत्थर जिस्म में जान आ गयी तेरे होंठ चूमकर
कैसी खुशी ? काहे का गम ? कैसा नशा ?
सब के सब फीके पड़ गए तेरे होंठ चूमकर
मिलते वक़्त ही तय था हमें बिछड़ना भी है
बिछड़ते वक़्त तय करो कुछ न कहोगे मेरे होंठ चूमकर
अलविदा दूर से कहना मुझे, मैं गर मर जाऊं
फिर से जी उठूंगा गर अलविदा कहा मेरे होंठ चूमकर
कैसा इश्क -कौन सा प्यार ? सब मन के वहम है 
काश कोई होता, कुछ कहता मेरे होंठ चूमकर
                                            गोविन्द  कुंवर 
 
