तेरी जुदाई
                                    
                            तेरी जुदाई मुझे बहुत सताएगी 
दिन में बेचैनी रात में नींद नहीं आएगी
चाह कर भी तुझे कैसे भुला पाउँगा
वो छत, मकान और गलियां तो छोड़
तेरे शहर का नाम भी आये तो तेरी याद आएगी
तू जहां भी रहे, खुश रहे, आबाद रहे
अगर मै बद्दुआ भी दूँ तो
दिल से यही आवाज़ आएगी
                              गोविन्द कुंवर
