तुम चले गए
                                    
                            तुम चले गए
पछतावा ये नहीं क़ि तुम चले गए
जो बात कहनी थी, कह नहीं पाए
जो तुम समझे वो सब गलत समझे
जो समझाना था हम समझा नहीं पाए
और तुम चले गए
एक शाम तुम्हारा हाथ पकड़ना था
छत के किनारे पे बैठकर तेरे आँखों में 
चाँद नहीं एक ख्याब देखना था
शायद ख्वाब नहीं बस तुम्हे देखना था
ये सब कर नहीं पाए 
और तुम चले गए
                    गोविन्द कुंवर 
