जाने कब मंजिल आ जाये
                                    
                            जाने कब मंजिल आ जाये कितना बाक़ी है सफर मुझमें
इतनी दूर से आये हो तो कुछ दिन और ठहर मुझमें
फिर तेरी याद है आयी सुबह शाम दिन दोपहर मुझमें
तू आता नहीं तेरी यादें क्यूँ आ जाती है हर पहर मुझमें
तू कहाँ-कहाँ भटकता है कितने चिड़ियों के है घर मुझमें
बूढ़ा हूँ तो क्या, बूढ़े बरगद जैसे कितने है शजर मुझमें
जाने कब मंजिल आ जाये कितना बाक़ी है सफर मुझमें
इतनी दूर से आये हो तो कुछ दिन और ठहर मुझमें
                                                        गोविन्द कुंवर
