ज़िन्दगी
                                    
                            ये साल भी बीत गया, बड़ी तेज रफ़्तार है ये ज़िन्दगी
चले थे कहां ,कहां आ गए,पीछे मुड़कर देखने दे मुझे
अब लोगों की बातो को अनसुना कर ये ज़िन्दगी
मैं दिखता कैसा हूँ,खुद की नज़रों से देखने दे मुझे
तुझे जी है कितनी और काटी है कितनी ये ज़िन्दगी
जीने के दो-चार दिन है,कटाने को हिसाब लगाने दे मुझे
तूने दिया क्या है और मुझसे छीना क्या है ये ज़िन्दगी
मेरे हिस्शे में जब वो ही नहीं बस भीड़ को देखने दे मुझे
                                                                   गोविन्द कुंवर 
