ये वक्त 
                                    
                            ये वक्त और तू कितना वक्त लेगा
उसके जख्मो को मिटाने में  
कुछ भर गए,कुछ रह गए है 
की फिर से चीख उठा हूँ में 
उसकी नज़रो से खरोंचे जाने में
                                         गोविन्द कुंवर 
