मेरे कुछ ही दोस्त है
                                    
                            मेरे कुछ ही दोस्त है
जिनसे मुझको पटता है
ज्यादा दोस्त बनाना हो तो
खुद को बेचना पड़ता है
मैं मंदिर-मस्जिद नहीं जाता
मेरे रोम-रोम में,राम बसता है
वो मंदिर का पुजारी यूँ ही नहीं है
मंतर कम, ज्यादा चमचागिरी पढ़ता है
ये शहर तू कैसा गुंडा-गिरी करता है
तू कभी मेरे गाँव आ, फिर मैं तुझे बताऊं
जो कायर अकेले चल नहीं सकता
वही सबको डराता  फिरता है
                             गोविन्द कुंवर
