कब तक परखे
                                    
                            कौन हे अपना कौन पराया,कब तक परखे
जीने का सलीका रिझाने का सऊर तुम सीखो
हम  तो हर शाम रंगीन बना लेते है
जो भी मिल जाये अपन सरीखे 
                                   गोविन्द कुंवर 
